Article Details

भारतीय परिवार प्रणाली उद्भव एवं विकास | Original Article

Mamta Kumari*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः उसी अनुरुप वह अपना जीवन-यापन परिवार, छोटे समूहों अथवा उसके वृहद् रूप, समाज से सम्बध्ध रहकर ही करता है। कोई भी व्यक्ति स्वयं का पूर्ण मूल्यांकन इन इकाइयों से भिन्न रखकर नहीं कर सकता क्योंकि सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं वरन् व्यावसायिक स्तर पर भी भौतिक वस्तुओं का आदान प्रदान भले ही न हो, मात्र विचारों का आदान प्रदान भी एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति पर निर्भरता को पूर्ण रूपेण स्पष्ट करता है। व्यक्ति का उसके परिवार के सदस्यों जैसे माता-पिता, पत्नी, पुत्र-पुत्री,भाई-बहन अथवा समाज के अन्य छोटे-छोटे समूहों जैसे मित्र-वर्ग, आस-पड़ोस, धार्मिक समाज आदि के अतिरिक्त व्यावसायिक उद्देश्य से विश्व के अन्य समाजों से भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सम्बन्ध रहता है। आज तकनिकी के बहुआयामी विकास ने विश्व के विभिन्न व्यक्तियों तथा समाजों को एक दूसरे के करीब लाने का कार्य किया है तथा एक दूसरे को परस्पर प्रभावित कर उन्हें परिवर्तनशील भी बना रहा है जो प्राचीन भारतीय मनीषियों की उक्ति वसुधैव कुटुम्बकम को भलीभांति सार्थकता प्रदान करता है। परिवार व्यक्तियों का ऐसा समूह माना जा सकता है जो विवाह और रक्त संबंधों से संगठित होता है। परिवार शब्द के अंग्रेजी पर्याय फेमिली शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द फेमूलस से हुई है जिसका अर्थ है सेवक अथवा नौकर।