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बिहार में ध्रुपद गायकी की परंपरा एवं इस परंपरा को समृद्ध करने में पं. क्षितिपाल मल्लिक का योगदान | Original Article

Diwakar Narayan Pathak*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारतीय संगीत की परंपरा संपूर्ण विश्व की संगीत परम्पराओं से प्राचीन एवं समृद्ध रही है, जिसकी प्रमाणित जानकारी भारतवर्ष में रचित वेदों, पुराणों एवं ग्रंथों से प्राप्त होती है। ललित कलाओं में संगीत का विशेष एवं उच्च स्थान रहा है। कला सदैव परिवर्तनशील रही है, जिसका प्रभाव संगीत में भी प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। प्राचीन समय में संगीत, ईश्वर की उपासना का एक सशक्त माध्यम था, परन्तु समय और समाज ने इसे लोकरंजन का भी विषय बनाया। इस प्रकार वर्तमान समय तक इसमें कई परिवर्तन आये। सामगान से प्रबंध गायन, इसके बाद ध्रुपद-धमार का जन्म और इसी क्रम में ख़्याल, ठुमरी, ग़ज़ल, भजन एवं गीत आदि इसमें आये परिवर्तन एवं लोकप्रियता का ही परिणाम हैं।