भारत में शिक्षा का मौलिक अधिकारः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन | Original Article
एक उपकरण के रूप में शिक्षा मनुष्य की उन्नति के लिए सबसे शक्तिशाालीतंत्र है। शिक्षामनुष्य को मुक्ति देती है और अज्ञान से मुक्ति दिलाती है। शिक्षा को अब मानवीय अधिकार और सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में देखा जा रहा है। अनुच्छेद 26 (1) के अनुसार मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948 यह बताती है कि सभी को शिक्षा का अधिकार है। कम से कम प्रारंभिक और मौलिक चरणों में शिक्षा मुफ्त होगी। इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशको बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (आरटीई) अधिनियम 2009 के प्रावधानों में फिर से लागु किया गया है, जो 1 अप्रैल 2010 को लागु हुआ। वास्तव में, यह अधिनियम शिक्षा के प्रति राज्य को जिम्मेदारी देता है। प्रस्तुत शोध पत्र में अनुच्छेद 21-ए के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के संवैधानिक और विधायी परिप्रेक्ष्य को उजागर करने का प्रयास किया गया है। यह पत्र अनिवार्य रूप से अनिवार्य शिक्षा के लिए भारतीय प्रणाली के दृष्टिकोण का पता लगाने और मौजूदा आरटीई अधिनियम की खामियों को इंगित करने का लक्ष्य रखता है।