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एकेश्वरवादी आन्दोलन के प्रणेताओं में संत रामदास के विचार: एक मूल्यांकन | Original Article

Kumari Neelam*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारत वर्ष के क्षितिज पर यह शतब्दी अपने में अनेकानेक विशेषताएँ लेकर चमकी थी। भारतीय मानव समाज को विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी अनेकानेक महान व्यक्ति प्रदान किये। अन्य क्षेत्रों के अतिरिक्त धार्मिक क्षेत्र में भी कबीर, गुरूनानक, रैदास, दादु, गुरू, अर्जुन, नानक देव हरिदास, धन्नाजाट के क्रांति, पैदा कर दी थी।[1] इन संत कवियों की वाणी में धार्मिक अवतारना में हिन्दू एवं मुसलमानों के विथ्याचार विचारों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। इन लोगों ने तत्कालीन धर्म में विद्यमान रूढ़ियों और अन्धविश्वासों को समाप्त करने का प्रयास करते हुए धर्म के सहज रूप को प्रसारित करने का पूर्ण प्रयत्न किया है। इन संतों का धर्म सात्विकता, सत्याचरण एवं मन की शुद्धता पर आधारित है। ‘वाह्याडम्बरों को वे मिथ्या समझते हैं। उनके समस्त धार्मिक तथ्य सत्य और सदाचार पर निर्भर थे उन्होंने धर्म साधना में सत्संगति साधु सेवा और गुरू सेवा की बलपूर्वक निरूपण किया।[2]