राम चरित मानस के संवाद की सामाजिक चेतना | Original Article
उतर भारत में रामभक्ति का जो प्रचार-प्रसार हुआ उसका एक मात्र श्रेय रामानंद को ही है। रामानंद के पूर्व भी बहुत से वैष्णव भक्त हुए, किंतु राम भक्ति के वास्तविक आचार्य रामानंद ही समझे गए। यधपि रामानंद के शिष्य कबीर ने राम नाम का आश्रय लेकर निराकारवादी संत मत की रूपरेखा निर्धारित की, तथापि रामभक्ति का पूर्ण विकास तुलसीदास की काव्य रचनाओं में ही हुआ। अतः रामकाव्य की कवियों पर विचार करने से पूर्व राम भक्ति के विकास पर दृष्टि डालना अनिवार्य होगा। राम का महत्व सर्वप्रथम हमे वाल्मीकि रामायण में मिलता है। इसकी तिथि ईशा के 600 या 400ईशा पूर्व मानी जाती है(1) वाल्मीकि रामायण का दृष्टिकोण लौकिक है जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इस संदर्भ में डा० रामकुमार वर्मा ने लिखा है-‘‘इसके द्वारा ही हम धर्म के यथार्थ रूप का परिचय पा सकते हैं।ग्रंथ धार्मिक न होने के कारण अंधविश्वास और भावोंमेष से रहित है अतः इसमें हम लौकिक दृष्टिकोण से धर्म का रूप देख सकतेहैं।‘‘ (2)