भारतीय राजनीति में मुस्लिम युवा की सहभागिता | Original Article
भारतीय राजनीति में मुस्लिम युवाओं की जैसी भागीदारी होनी चाहिए, वैसी दिखती नहीं है। सच्चर कमेटी रिपोर्ट बतलाती है कि वर्तमान में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व आबादी में उनके अनुपात की तुलना में बहुत कम हो गया है। इससे उनमें अलगाव का भाव आ सकता है। राजनीतिक दलों को बदलती स्थितियों को देखते हुए मुस्लिम युवाओं के राजनीति में आने का अवसर देना चाहिए। वस्तुतः मुस्लिम समाज में सामाजिक आंदोलन नहीं के बराबर हुए हैं। छोटे स्तर पर ही सही, पर शिक्षित मुस्लिम युवा वर्ग में समाज सुधार के क्षेत्र में पहल करने की बड़ी आवश्यकता है। मुस्लिम युवाओं को ब्लाक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक चलनेवाली आर्थिक, सामाजिक योजनाओं में सम्मिलित होने की आवश्यकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में केवल अपने परिवार, मोहल्ले, बिरादरी, धर्मावलम्बियों तक ही अपनी चिंताओं को सीमित रखने वाले लोग प्रायः मुख्यधारा से कट जाते हैं जिसका उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। मुसलमानों का भारतीयकरण तो एक बकवास और उत्तेजित करने वाला नारा था, लेकिन वास्तविक यह है कि देश की लोकतांत्रिक प्रणाली और राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया में यदि मुसलमान भाग न लेंगे, तो उन्हें बहुत अधिक नुकसान होगा। जब तक मुसलमान देश में चलने वाली लोकतांत्रिक षक्तियों से अपने को नहीं जोड़ेंगे तथा उसमें उनकी सक्रिय भागीदारी नहीं होगी तब तक उनका अस्तित्व खतरे में रहेगा। मुस्लिम समाज में षिक्षा जागरूकता, खुलेपन और आज की अन्य चुनौतियों को स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए। डब्ल्यू सी स्मिथ ने संतावन वर्श पहले ही कहा था कि सामाजिक सुधार न आने के लिए नेतृत्व में इच्छा षक्ति की कमी ही मुख्यरूप से जिम्मेदार है, सामाजिक सुधार के क्षेत्र में आजादी के बाद से ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया जो मुसलमानों में सामाजिक प्रगति को प्रोत्साहित करे।