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ब्रिटिश राज मे महिलाओ की स्थिति का अध्ययन | Original Article

Rupa Kumari*, Viveka Nand Shukla, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

किसी भी राष्ट्र या समाज में महिलाओं के प्रति अलग-प्रकार के दृष्टिकोण है। हिन्दू धर्म में स्त्री को सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से उसे धन, शक्ति और बुद्धि के आदर्श के रूप में प्रदर्शित किया गया है जबकि भारतीय नारी के संदर्भ में मान्यता बिल्कुल विपरीत है। आज भले ही कानून लड़की के पिता के धन पर अधिकार स्वीकार करता है किन्तु इस कानून का क्रियान्वयन समाज में तब तक होना सम्भव नहीं है, जब तक कोई कुंजी कानून के द्वार पर दस्तक नहीं देती। हिन्दू धर्म में शक्ति का अवतार भले ही दुर्गा हो किन्तु भारतीय नारी को आज भी अबला ही माना जाता है। इसी प्रकार एक लम्बे समय तक स्त्री की बुद्धि और विवेक को समाज द्वारा सन्देह की दृष्टि से देखा जाता रहा है और आज भी देखा जा रहा है।” समाज हमेशा आपके पूर्ववर्ती समाज को देखते हुए ही अपनी परम्पराएँ बनाता एवं बिगाड़ता है। केवल भारतीय समाज ही नहीं बल्कि विश्व की किसी भी जाति, सम्प्रदाय वर्ग का समाज प्राकृतिक रूप से पुरुष सत्तात्मक समाज, कुछ अपवादों को छोड़कर, रहा है और वर्तमान में है भी। यदि ऐसा न होता तो पाश्चात्य देशों में अनेक स्त्री लेखिकाओं, समाज सेविकाओं को नारीवादी की संज्ञा न दी गयी होती और उन्हें पुरुषों द्वारा बनायी गयी अनेक परम्पराएँ न तोड़नी पड़ती। उदाहरणतयः सेकेण्ड सैक्सश् की विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखिका सीमाने-द-वोऊवार जिन्हें 20वीं सदी में नारी मुक्ति आंदोलन चलाने की क्या आवश्यकता थी?