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वाराणसी में सांस्कृतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन | Original Article

Shyamdeo Paswan*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

समायोजन एक सहयोगी सामाजिक प्रकिया है। समायोजन समाज में व्यक्ति या समूह को जोडने वाली प्रकिया है। यह संघर्ष से सहयोग की ओर बढने का प्रथम चरण है। जब भी दो विरोधी पक्ष प्रतिस्पर्धा या संघर्ष समाप्त करके सहयोग करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम वे एक दूसरे से समायोजन स्थापित करते हैं। व्यक्ति या समूह की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति रही है कि वे संघर्ष को पसंद नहीं करते या हमेशा संघर्ष या प्रतियोगिता नहीं कर सकते हैं। इसी संघर्ष की स्थिति को टालने के लिए जो समझौता किया जाता है, उसे ही समायोजन कहते हैं। यह समायोजन संघर्षरत व्यक्तियों के बीच या तो स्वयं या किसी मध्यस्थ के द्वारा स्थापित किया जाता है। समायोजन एक बार स्थापित हो जाने का मतलब यह कभी नहीं होता कि समायोजन करने वाले आगे कभी संघर्ष नहीं करेंगे और हमेशा सहयोग की ओर ही बढ़ेंगे। दरअसल समायोजन में संघर्ष के बीच अवश्य ही मौजूद रहते हैं। लेकिन समायोजन के द्वारा संघर्ष को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। प्रजातंत्रीय शासन प्रणाली में साझा सरकार समायोजन का उदाहरण है। मकीवर एवं पेज ने समायोजन को एक विस्तृत अर्थ में परिभाषित करने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि समायोजन शब्द विशेषकर उस प्रकिया को अभिव्यक्त करता है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने पर्यावरण के साथ संतुलन स्थापित करता है। पर्यावरण का अर्थ काफी व्यापक होता है, इसके अंतर्गत संपूर्ण बाह्य जगत आ जाता है। इस परिभाषा के अनुसार विवाह के बाद वधुओं का ससुराल में सास ससुर के साथ सामंजस्य स्थापित करना या किसी प्रवासी द्वारा शहरी वातावरण में नया संबंध स्थापित करना भी समायोजन कहलाता है। हालांकि आज समाजशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग इतने विस्तृत अर्थ में नहीं होता है। इस अर्थ में समायोजन शब्द का प्रयोग मात्र मनोविज्ञान के क्षेत्र में होता है। अब समायोजन का तात्पर्य उस स्थिति से है जबकि किसी संघर्ष या तनाव की स्थिति में कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह बाहर निकलकर सहयोग और समझौते की स्थिति में रहता है। अर्थात मकीवर एवं पेज का दृष्टिकोण काफी पुराना पड़ गया है।