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साहित्य की प्रगतिशील परम्परा और रामविलास शर्मा | Original Article

Anand Kumar Yadav*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

रामविलास शर्मा के पहले आलोचना की कई परम्पराएँ चल रही थीं। एक ही समय में कई परम्पराओं या विचारधाराओं का साथ-साथ चलना अस्वाभाविक नहीं है। इतिहास के काल विशेष में कई प्रकार की विचारधाराएँ एक दूसरे को काटती-पीटती टकराती चलती रहती हैं। नये आलोचक को उनमें से ऐसी परम्परा अन्वेषित करनी पड़ती है जो साहित्य और समाज को नयी दिशा देने में समर्थ हो।