भाव्यवाद | Original Article
महाभारत में नियति या भाग्य के अस्तित्व को दैव इच्छा के परिप्रेक्ष्य में स्वीकारा गया है। महाभारत में कहा गया है कि ‘‘यदि कभी कोई पुरुषार्थ सफल होता दिखाई देता है तो वहाँ भी खोज करने पर दैव का ही सहयोग सिद्ध होता है’’[ 40]