अभ्रक उद्योग की समस्याएँ एवं रूग्ण उद्योगों को लाभकारी बनाने की योजना | Original Article
झारखण्ड अभ्रक उत्पादन भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध रहा है। भण्डार एवं उत्पादन की दृष्टि से आंध्र-प्रदेश आज प्रथम स्थान पर और झारखण्ड का दूसरा स्थान है। झारखण्ड में पाया जाने वाला अभ्रक उत्तम कोटि का है और विश्व बाजार में यह बंगाल रूबी के नाम से प्रसिद्ध रहा है। इसके बावजूद झारखण्ड का अभ्रक उद्योग आज पतन के कागार पर है। अभ्रक की अनेक खानें तथा अभ्रक उद्योग की अनेक इकाइयाँ विभिन्न प्रकार की समस्याओं के कारण भी आज बंद हो चुकी है। इसके कारण अभ्रक के उत्पादन तथा निर्यात दोनों में 1975 के बाद तेजी से गिरावट हुआ है। अभ्रक उधोग की समस्या मुख्यत दो प्रकार की होती है- (I) बाह्य समस्याएँ - जैसे-चीन द्वारा माइका पेपर का सस्तस उत्पादन, झारखण्ड के स्थानीय लागों द्वारा अवैध खनन, अमेरिका द्वारा विकल्प का उत्पादन, सोवियत रुस का विघटन इत्यादि। (II) आंतरिक समस्याएँ - मिटको के अ्रर्तगत व्याप्त भ्रटाचार, रिश्वतखोरी और घटिया नमूने का अनूमोदन, मूल्य की अस्थिरता, अभ्रक की मार्केटिंग की नीति माँग और आपूर्ति के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होना, विपणन संगठन के अभाव, कुशल श्रमिक, तकनीकी विशेषज्ञों एवं प्रबंधन की कमी, कौशल ज्ञान का अभाव, अभ्रक श्रमिकों को काफी कम मजदूरी, ट्रेड यूनियम का विकास धीमा होना, बीहड़ जंगलों में जहाँ। खदपन उपलब्ध परिवहन एवं संचार साधनों का विकासन होना, नवीन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल न होना, अनुसंधान एवं अन्वेषण पर भी पर्याप्त ध्यान न देना, अभ्रक भण्डार का व्यवस्थित सर्वेक्षण न होना, झारखण्ड का उग्रवाद से प्रभावित होना, वन संरक्षण कानून तथा वन एवं खनन विभाग के बीच तालमेल की कमी, अभ्रक जाँच समिति की महत्त्वपूर्ण सिफारिश का लागू न होना, ‘झारखण्ड के अभ्रक उद्योग के विकास के लिए कोई नीति न बनाना इत्यादि। समाधानः-रूग्न अभ्रक उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिएःकुछ की उपाय की जरुरत है- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पद्र्धा के लिए हेतु केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार संयुक्त प्रयास, निर्यात के लिए एकरूप नीति के विकास, विस्तृत बाजार का अध्धयन,देशी बाजार में अभ्रक के प्रति आकर्षण पैदा करना, ऐसी नीति को बनाना जो अभ्रक की बाजार नीति माँग और आपूर्ति के अनुकूल हो, अभ्रक खान मालिक द्वारा श्रमिकों के शोषण को रोकने के प्रति सरकार का ठोस कदम, कोयला क्षेत्रों की भाँति स्वस्थ ‘ट्रेड यूनियन’ का विकास ,परिवहन एवं संचार व्यवस्था का विकास, नवीन तकनीकी का प्रयोग, उग्रवाद तथा नक्सलवाद से सुरक्षा, वन विभाग एवं खनन विभाग के बीच तालमेल बनाने की कोशिश इत्यादि।