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प्रियदर्शिका नाटिका का मूल्यांकन: (नाट्यशास्त्रीय ट्टष्टि से) | Original Article

Kumari Pramila*, in Journal of Advances in Science and Technology | Science & Technology

ABSTRACT:

हर्ष नाट्य रचना में संस्कृत नाट्यपरम्परा में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। प्रणय नाटिकाओं के रचयिता के रूप में हर्ष का स्थान बहुत सम्मानित है। इनकी रचनाओं पर कालिदास एवं भास का प्रभाव निष्चित रूप से परिलक्षित है। कालिदास के “मालविकाग्निमित्रम्” नाटक के अनकरण पर उन्होंने दो प्रणय नाटिकायें लिखी हैं। “उदयन” से संबंधित कथानक को लेने में हर्ष ने भास का अनुकरण किया है। परन्तु हर्ष के कथानक भास के कथानकों से सर्वथा भिन्न है। प्रणय नाटकों में जो कमनीय कोमल तथा मनोरम तत्व होना चाहिए, हर्ष ने अपनी रचनाओं में उन सबका उपयोग किया है। मानवीय भावनाओं के साथ प्रकृति का पूर्ण सामंजस्य स्थापित करने में वे बहुत कुछ कालिदास के समान ही सफल है। उनकी रचनाओ में प्रणय की उद्भावना और विकास प्रकृति के सुरम्य वातावरण में हुआ है। “प्रियदर्शिका”, “रत्नावली” और “नागानन्द” इन तीनो कृतियों में यह विशेषता परिलक्षित होती है।