धर्म व विज्ञान का समन्वय | Original Article
नर और नारी का कार्यक्षेत्र भिन्न है। नारी गृह-व्यवस्था में संलग्न रहती है। गर्भ धारण और शिशु-पालन यह दोनों काम उसी को करने होते हैं। नर का कार्यक्षेत्र भिन्न है वह खेत, दफ्तर, कारखाने आदि में काम करता है और उस उपार्जन से गृह-व्यवस्था के लिए नारी की आवश्यकताएँ पूरी करता है। देखने में दोनों के बीच भारी भिन्नता दिखाई पड़ती है। शरीर की रचना की दृष्टि से भी कई अवयवों में प्रतिकूल दिखने वाला भारी अन्तर भी रहता है। सहज स्वभाव में भी थोड़ा, किन्तु महत्वपूर्ण अन्तर रहता है इतने पर भी वे दोनों एक-दूसरे के पूरक है। दोनों के सम्मिलित प्रयत्न से ही गृहस्थ की गाड़ी इन दो पहियों के सघन से ही गतिशील रहती और आगे बढ़ती है। जागृति और सुशुप्ति का अन्तर स्पष्ट है। जागते समय मनुष्य सक्रिय रहता है और सोते समय वह निष्क्रिय बन जाता है। देखने वाले इस परस्पर विरोधी स्थिति ही कहेंगे। इतने पर भी शरीर शास्त्री यही कहेंगे कि दोनों स्थितियाँ एक-दूसरे के पूरक हैं। जागृति की थकान ही निद्रा लाती है और निद्रा का विश्राम ही जागृति के समय श्रम करने की क्षमता प्रदान करता है।