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गाँधी जी का बुनियादी शैक्षिक दर्शन | Original Article

Anju Srivastava*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

युग-पुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत को आजाद कराने में ही योगदान नहीं दिया बल्कि उन्होंने एक दूरदर्शी शिक्षाविद् के रूप में कर्तव्य कर्म आधारित मूल्यवादी दृष्टिकोण से आच्छादित एक नवीन शिक्षा योजना की रूपरेखा भी प्रस्तुत किया। उनके द्वारा प्रस्तुत शिक्षा-योजना को बेसिक शिक्षा योजना, वर्धा योजना, आधारभूत शिक्षा योजना आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। इसके अलावा महात्मा गांधी ने शिक्षा के विविध उपांगों के संदर्भ में भी अपने विचार समय-समय पर व्यक्त किया है। गांधी जी के शिक्षा विषयक सभी विचारों को एकीकृत करते हुए शैक्षिक दर्शन सारगर्भित ढंग से प्रस्तुत है- महात्मा गाँधी शिक्षा को एक व्यापक प्रक्रिया मानते थे। वस्तुतः शिक्षा वह है जो व्यक्ति में निहित सभी पक्षों को बहुमुखी करती है। उनका दृष्टिकोण था कि शरीर, मन, हृदय और आत्मा के योग से मानव आच्छादित होता है। इसलिए शिक्षा के द्वारा हाथ, मस्तिष्क और हृदय का विकास अवश्य किया जाना चाहिए। उन्होंने लिखा भी है- “शिक्षा से मेरा आशय बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के सर्वोत्तम विकास से है।” गाँधी जी शिक्षा को मात्रा साक्षरता एक सीमित नहीं मानते थे। उन्होंने लिखने-पढ़ने के साधारण ज्ञान (साक्षरता) को शिक्षा न मानकर व्यक्ति में निहित बहुमुखी शक्तियों के उन्नयन से सम्बन्धित करते हुए शिक्षा को व्यापक परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित किया। उन्हीं के शब्दों में “साक्षरता न शिक्षा का आदि है और न अन्त, यह तो ही और पुरुषों को शिक्षित करने का एक साधन मात्र है।” अतः स्पष्ट है कि गाँधी जी शिक्षा को व्यापक रूप में ग्रहण करते हुए यह निरूपित किया कि मनुष्य की पूर्णता उसके व्यक्तित्व के पूर्ण विकास से है अतः शिक्षा के द्वारा मानव व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करने वाले अवयवों (शरीर, मन, हृदय और आत्मा) का संगतिपूर्ण विकास किया जाना चाहिए।