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क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का भारत के विभिन्न भागों में उदय एवं प्रसार | Original Article

Sneha Pandey*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

राष्ट्र किसी जमीन के टुकड़े का नाम नहीं, देश और राष्ट्र ये दोनो समानार्थक शब्द भी नहीं हैं। देश भूमि की परम्परागत अथवा निर्धारित सीमाओं को स्पष्ट करता है। किसी देश की एक विशिष्ट संस्कृति होती है। उस संस्कृति में निहित जीवन शैली के अनुसार उस देश के निवासी अपना जीवन व्यतीत करते हैं। समान आदर्श, समान विश्वास और समान अनुभूतियां उन लोगों के हितों को एक रुप कर देती है। उनके अतीत में जो महत्वपूर्ण घटनायें हुयी हैं, जो महापुरुष उनके इतिहास के निर्माता रहे हैं उनके प्रति लोगों के मन में विशेष श्रद्धा का भाव जन्म लेता है। अपनें अतीत पर, इतिहास पर, महापुरुषों पर और अपने विकास के लिये अपने को ही स्वावलम्बी प्रयत्न पर विश्वास रखते हुये अपने देश के हित की इच्छाओं अपने व्यवहार के द्वारा प्रकट करना, धन, प्रलोभन के सामने राष्ट्र हित को वरीयता देना, देश की निष्काम भाव से सेवा करना अर्थात् प्रतिफल की कामना न करते हुये अपने राष्ट्र के प्रति पूर्ण समपर्ण का भाव रखना, राष्ट्रवाद के कुछ कर संकेतांक कहे जा सकते हैं।