बौद्धकालीन भारतीय समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था एवं विभिन्न वर्णों की स्थिति | Original Article
ई.पू. छठी शताब्दी का काल भारत के लिए ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए धार्मिक क्रान्ति का काल था। भारतीय सामाजिक परिस्थितियों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय समाज अत्यन्त महत्वपूर्ण सामाजिक संक्रान्ति से गुजर रहा था। यह एक संघर्ष काल था। इसी पृष्ठ भूमि में बौद्ध सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव हुआ। ब्राह्मण-क्षत्रिय में, राजतंत्र एवं गणतंत्र में, आर्यो तथा आर्येत्तर जातियों के बीज फैले संघर्ष ने धार्मिक क्रान्ति को अवश्यम्भावी बना दिया। उत्तर वेद कालीन सामाजिक परिस्थितियों ने इस क्रान्ति के लिए उपयुक्त भूमि बनाई। जाति प्रथा की कठोरता, कर्मकाण्डों की बहुलता, हिंसामय यज्ञों की बाढ़, बहुदेववादजन्य पारस्परिक वैम्नस्य, विविध धार्मिक आडम्बर आदि इस क्रान्ति के प्रमुख कारण थे।