आचार्य भरत के समकालीन संगीत विद्वान | Original Article
कोहल भरत मुनि की परम्परा के सर्वाधिक प्रशंसित आचार्य रहे होंगे। यद्यपि भरत मुनि के पुत्र होने से उन्हें भरत का समकालीन मानना चाहिए तथापि रामकृष्ण कवि इनका समय ईसवी पूर्व तीसरी शती मानते हैं। आचार्य अभिनवगुप्त ने अनेक स्थानों पर कोहल के मत का उल्लेख किया है तथा कोहल को आचार्य भरत का समकालीन माना है। इसी कारण अनेक प्रसंगों में आचार्य अभिनवगुप्त ने उनके मत का उल्लेख किया है। कोहल अनेक ग्रन्थों के प्रणेता थे। अभिनवभारती से ज्ञात होता है कि कोहल मत का ‘सांगीतमेरु’ नामक किसी ग्रन्थ में संग्रह था। ‘संगीतरत्नाकर’ के टीकाकार कल्लिनाथ का भी ‘सांगीतमेरु’ से परिचय था किन्तु यह ग्रन्थ अप्राप्य है।[1] ‘ताललक्षणम्’ नाम के एक दूसरे ग्रन्थ के रचयिता भी कोहल कहे जाते हैं, किन्तु किसी प्राचीन ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं किया है।