प्रेम की पराकाष्ठा का गीत: भ्रमरगीत | Original Article
कृष्ण ने जब ब्रज छोड़ा तो वहां जीवन-पर्यन्त लौट नहीं सके। परन्तु पीछे रह गयी थीं उनसे प्रेम करने वाली वे गोपिकाएं जो हर क्षण अपने प्रेमी का रास्ता देखतीं कि कभी तो वह लौटेंगे। कृष्ण स्वयं तो वहां नहीं लौट सके लेकिन उद्धव को समाचार के साथ भेजा। कहते हैं कि उद्धव को जब अपने ज्ञान का अति मान हो गया था तो कृष्ण को उपाय सूझा कि मात्र गोपिकाएं ही हैं जो उसका मर्दन अपने प्रेम भाव से कर सकती हैं। निसंदेह ऐसा हुआ भी। ब्रज में उद्धव के योग संदेश और गोपिकाओं के प्रेम के बीच हुई जिरह और तर्कों को सूरदास ने भ्रमर गीत के माध्यम से लिखा है। यह रचना भक्तिकाल के काव्य में पठनीय है। इसके पद अति भावुक और अनुराग से भरे हैं।