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जैन धर्म में पर्यावरण संदेश | Original Article

Subhash Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

आज अखिल विश्व में पर्यावरण-संरक्षण की अभूतपूर्व समस्या विद्यमान है। यह मानव अस्तित्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। ज्ञातव्य है कि पर्यावरण का सम्बन्ध न केवल विश्व संस्कृति, परम्परा, साहित्य, कला, अर्थनीति, राजनीति, वाणिज्य नीति एवं समाज से बल्कि विश्व के प्राणी मात्र के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि विश्व के समस्त संस्कृतियों, परम्पराओं के अधिकांश प्रबुद्धजनों, चिन्तकों एवं सरकारो का पर्यावरण की शुद्धता, अक्षुण्णता एवं संरक्षण पर गहराई पूर्वक सार्थक विचार किया गया है। मगर भारतीय संस्कृति में विशेषकर जैन संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण एवं अक्षुण्णता पर केवल अनुचिन्तन ही नहीं किया गया है अपितु, इसका मानवी व्यवहारिक जीवन में मूर्तरूप देकर इस दिशा में अभूतपूर्व सार्थक प्रयास किया गया है। इस प्रकार जैन धर्म प्रारंभ से ही पर्यावरण की शुद्धता बनाये रखने में सतत् सचेष्ट एवं जागरूक है।[1]