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भारत-चीन प्राचीन सम्बन्ध (व्यापारिक परिप्रेक्ष्य में) | Original Article

Parul Tyagi*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

वर्तमान की परिस्थितियों में भारत चीन संबंधों का स्वरूप समझना भले ही कठिन सा प्रतीत होता है लेकिन प्राचील समय में दोनो देशों के मध्य जो सम्बन्ध स्थापित थे वे सौहार्द व मधुर थे। दोनो देशों के मघ्य जो सम्बन्ध प्राचीन समय में स्थापित हुए थे इनका मुख्य कारण व्यपार था। हेगल के अनुसार, ‘‘भारत इतिहास में महत्वकांक्षाओं की धरती के रूप में जाना जाता है।’’ भारत और चीन के मध्य व्यापारिक जल व स्थल दोनों मार्गो की व्यवस्था थी। लेकिन दोनों मागों की कठिनता के कारण अधिक समय लग जाता था। स्थल मार्ग अधिक पुराना था और बहुधा काम में भी आता था, किन्तु नौ-निर्माण और नाविक कला में विकास से जल मार्ग भी लोकप्रिय हो गया। प्रथम शताब्दी से चौथी शताब्दी के मध्य हिंद चीन में तथा हिंदेशिया के अनेक दीपों में भारतीय उपनिवेशों के हो जाने के कारण चीन से व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाने में भारत को सुविधा मिली। उत्तर-पश्चिम भारत से मध्य एशिया को जाने वाले बड़े मार्ग द्वारा चीन से यातायात होता था। किन्तु पूर्वी भारत से हिन्दचीन के रास्ते चीन आने-जाने में समय कम लगता था। अतः इस काल में यह दूसरा स्थल मार्ग अधिक प्रयोग किया गया।[1] गुप्तकालीन शासको ने व्यापारिक मार्गो को पहले की अपेक्षा अधिक सुरक्षित बना दिया था। ‘रघुवंश’ में कालिदास ने लिखा है कि नदियों, वनों तथा पहाड़ो में व्यापारी निर्भय यात्रा कर सकते थे।[2]