जनमाध्यम, सोशल मीडिया और कंप्यूटर नवाचार का बच्चों पर प्रभाव | Original Article
सोशल मीडिया हमारी आंखों के सामने तेजी से विकसित हो रहा है और इस नवीनतम तकनीक से हमारे बच्चों को अस्वीकार करना और छिपाना व्यावहारिक रूप से मुश्किल है। मीडिया एक्सपोजर का परिमाण मुख्य रूप से अधिक है। सर्वेक्षण कहता है कि और 73 भारतीय बच्चे सेल फोन उपयोगकर्ता हैं और हर साल गेमिंग और इंटरनेट के आदी बच्चों का प्रतिशत बढ़ रहा है। 2017 में, भारत में स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की वृद्धि की वार्षिक दर लगभग 129 है, जो चीन (109) से भी अधिक है। हमारे देश के विभिन्न शहरों में इंटरनेट डेडडिक्शन सेंटर शुरू किए गए हैं। प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ता है। यह भविष्य की पीढ़ी के इष्टतम विकास और विकास के लिए प्रभावी रूप से उपयोग करने के लिए प्रौद्योगिकी और मीडिया के लाभों और नकारात्मक प्रभावों को समझने का उच्च समय है। 21 वीं सदी को हम यदि मीडिया की सदी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। शिक्षा के क्षेत्र में नये-नये आयामों द्वारा शिक्षा जगत में महत्वपूर्ण उपलब्धियों का पहाड़ सा खड़ा कर दिया जिसमें मीडिया की लोकप्रियता सर्वत्र छायी रही। मीडिया ने न केवल वर्तमान में अपितु स्वतन्त्रता संग्राम में भी अपनी पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय तथा स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों के वैचारिक यज्ञ की यशोगाथा का प्रमाणिक अभिलेख प्रस्तुत किया है। संभवत अखबार ही पहला जनसंपर्क माध्यम था, जिसमें मल्टीमीडिया का प्रयोग हुआ। 1985 में मारकोनी ने बेतार रेडियो संदेश भेजा था, फिर 1901 में टेलीग्राफ का प्रयोग रेडियो के द्वारा शुरू हुआ, आज भी रेडियो तंरग ऑडियो प्रसारण में प्रयोग हो रहा है। अपने शुरूआती दौर में सोशल नेटवर्क एक सामान्य सी दिखने वाली र्साइट होती थी और इसके जरिए उपयोगकर्ता एक दूसरे से चैटरूम के जरिए बात करते थे और अपनी निजी जानकारी व विचार एक दूसरे के साथ बांटते थे।