बालमुकुन्द गुप्त जी के व्यंग्यात्मक निबन्ध | Original Article
लेखन की व्यंग्यात्मक विधा गुप्त जी के लिए एक साहित्यिक विरासत थी। गुप्त जी के जीवनकाल में जब देश की सामाजिक व्यवस्था बिखराव की ओर अग्रसर थी, भारतीय रीति-रिवाज पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से क्षीण हो रहे थे, देश में गरीबी बढ़ रही थी और सहस्रों लोग गृह तथा वस्त्रविहीन होकर भटक रहे थे। अंग्रेजी साम्राज्य के प्रतिनिधि भारत में अंग्रेजी राज्य की जड़ें गहरी जमाने में लगे हुए थे। ऐसी स्थिति पर प्रहार करने तथा राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए गुप्त जी ने व्यंग्यात्मक लेखन का सहारा लिया।