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दुष्यंत कुमार के काव्य में प्रतीक विधान | Original Article

Maya .*, Meenu ., in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

प्रतीक मूलतः लाक्षणिक शब्द शक्ति है। प्रतीक में एक मूर्तिकला तथा चित्रात्मकता रहती है, जिसके कारण इसमें प्रयोजनवती लक्षणा का भाव अधिक विद्यमान होता है। प्रतीक ऐसे शब्द चिह्नों या वस्तु को कहा जाता है, जिसके माध्यम से किसी अन्य वस्तु का बोध होता है। परन्तु अन्य वस्तु के साथ-साथ इसमें इस वस्तु की निजता तथा वस्तु का स्वरूप भी यथावत् विद्यमान रहता है। साहित्य के क्षेत्र में प्रतीक एक प्राचीन अवधारणा है। साहित्य में जिन शब्दों के समुच्चय से साहित्य का सर्जन किया जाता है, वे शब्द किसी एक भाव को प्रकट न करके किसी अन्य भाव, संवेगों या मनः स्थितियों का प्रतीक बन जाते है। वस्तुतः एक शब्द के भीतर ही एक अन्य अर्थ भी सूप्त अवस्था में विद्यमान रहता है, या दूसरा अर्थ भी विद्यमान रहता है। यह दूसरा अर्थ ही प्रतीक का कार्य करता हैं।