प्राचीन से आधुनिकता तक सिक्कों का इतिहास | Original Article
सिक्कों में अपने समय का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास छिपा रहता है लेकिन भारतीय सिक्कों का सिलसिलेवार इतिहास प्रस्तुत करने का काम हिन्दी में कम ही हुआ है। इतिहास और पुरातत्त्वप्रेमियों के लिए सिक्कों के इतिहास की जानकारी बहुत महत्त्वपूर्ण है। सिक्कों पर अंकित लेखों और लिपियों के माध्यम से कई बार अज्ञात तथ्य सामने आते हैं और संदिग्ध समझे जाने वाले तथ्यों की पुष्टि भी होती है। इस प्रकार सिक्कों के इतिहास के जरिये विभिन्न कालखंडों और राजवंशों के इतिहास के सम्बन्ध में प्रामाणिक तथ्य सामने आते रहे हैं। भारतीय सिक्कों का इतिहास पुस्तक से सिक्कों के जन्म और विकास के बारे में पता चलता है, साथ ही सिक्कों का क्या व्यापारिक महत्त्व है, इसकी भी जानकारी मिलती है। इससे आप जानेंगे कि सबसे पहले सिक्कों का चलन लिदिया में हुआ, फिर कैसे दूसरे राज्यों ने इन्हें चलन में लिया। कौन से समय में, कौन से राजा ने सिक्कों को कब-कब चलाया। उनकी निधियाँ कहाँ थीं। टकसालें कैसी थीं। किस धातु के और कितने माप-तौल के सिक्के बनते थे। वे चाँदी के थे, या सोने या ताँबे के - इन सबकी जानकारी बहुत ही सहज और रोचक भाषा में प्रस्तुत करती है। भारतीय सिक्कों का इतिहास ऐतिहासिक दस्तावेजों की एक अद्वितीय श्रृंखला प्रदान करता है। भारत में सिक्कों का इतिहास 2700 वर्ष पुराना है। भारत के इतिहास में विशाल साम्राज्यों, छोटे राज्यों आदि सभी ने अपने सिक्के ढलवाना जारी रखा। विभिन्न धातुओं में सिक्कों की कई हजारों किस्मों का एक लौकिक ऐतिहासिक खजाना था। ये ऐतिहासिक भारतीय सिक्के किंवदंतियों की बनावट को अपने अस्तित्व में बुनते हैं। सिक्के एक व्यक्ति को सही जानकारी प्रस्तुत करते हैं। हालांकि भारत में, प्राचीन काल के साहित्य में बहुत कुछ नहीं है जो आधुनिक अर्थों में ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में काम कर सकता है। सिक्के पिछले राज्यों और शासकों के सामाजिक-राजनीतिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक पहलुओं को समझने में मदद करते हैं। वे तारीखों को निर्धारित करने के लिए पुरातत्व में भी काफी मदद करते हैं।