सहजीवन का सच भारतीय समाज के संदर्भ में | Original Article
भारतीय समाज जहाँ एक ओर युवा वर्ग जाति-धर्म से बेखबर होकर ‘सहजीवन’ को अपना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर समाज का एक तबक ऐसे संबंधों के प्रति संशय एवं उपेक्षाभाव रखकर ‘सुपर अभिभावक’ की भूमिका निभाते हैं। कई बार तो ‘सुप्रीम कोर्ट’ को भी ऐसे मामले में दखल देना पड़ता है। इसलिये दार्शनिक ढ़ंग से विचार अनिवार्य प्रतीत होता है।