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राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में भारत - श्रीलंका द्विपक्षीय संबंध: एक विश्लेषण | Original Article

Somesh Gunjan*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

श्रीलंका भारत के समुद्री सीमा से सटा हुआ अत्यन्त निकटस्थ भारत का एक पड़ोसी राष्ट्र है। प्राचीन काल से ही भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, वाणिज्यिक संबंध रहे हैं। भारतीय मूल के सिंधी, गुजराती, पारसी और तमिल बहुल व्यक्ति श्रीलंका के आर्थिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्यों में अपनी महती सहभागिता सुनिश्चित करते रहे हैं। भारतीय मूल के लगभग 10,000 व्यक्ति ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं और श्रीलंका की आर्थिक-सामाजिक ढाँचे की एक महत्वपूर्ण कड़ी भी हैं। दोनों राष्ट्रों के मध्य सांस्कृतिक सम्पर्क और समन्वय का एक लम्बा इतिहास रहा है और साथ ही ब्रिटिश उपनिवेशिक प्रभुत्व का समान अनुभव भी रहा है। अतएव दोनों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित होना भी स्वाभाविक ही था। विचारों मे समानता और तटस्थता की नीति के कारण अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर भी दोनों राष्ट्र कई पहलूओं से महत्वपूर्ण हैं। सन् 1948 में श्रीलंका के एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरने के बाद दोनों राष्ट्रों के आपसी द्विपक्षीय संबंध कुछ एक दशकों को छोड़कर कई उतार-चढ़ाव के बावजूद सामान्य रहे हैं। सन् 1980 तक दोनों राष्ट्रों के बीच संबंध पूर्ववत बने रहें, किन्तु 1980 के उत्तरार्द्ध में कुछ गंभीर और संवेदनशील मुद्दों के कारण द्विपक्षीय संबंधों में अविश्वास का माहौल उत्पन्न होने लगे। 31 अक्तूबर 1984 को राजीव गांधी द्वारा भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद एक बार पुनः संबंधों में सामान्यीकरण की प्रक्रिया चली। कई महत्वपूर्ण समझौते, संधि और आपसी करार के द्वारा माधुर्य संबंधों का मार्ग प्रशस्त किया गया।