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पर्यावरण की दृष्टि से कबीर की प्रासंगिकता | Original Article

Pinky Devi*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

मानव-शरीर की रचना जिन पाँच तत्त्वों से हुई है, उन्हीं तत्वों ने उसके चारों ओर जीवन के पोषण के साधन जुटाए हैं। धरती, जल, अग्नि, आकाश व पवन इन्हीं तत्त्वों से प्रकृति में प्रत्येक वस्तु का निर्माण हुआ, जिससे पर्यावरण बनता है। वन, नदियां, पहाड़, फूल-पत्ते, हवा सभी कुछ तो मनुष्यों के जीवन के आधार-स्तम्भ हैं। इनमें से किसी एक का अभाव पूरी मानवता को संकट में डाल सकता है। तकनीकी, औद्योगिक विकास ने मनुष्य को सुविधाएं तो दी हैं, लेकिन उन सुविधाओं के साथ ‘मुफ्त उपहार’ ‘प्रदूषण’ का मिला है, वह उन सारे सुखों एवं विकास पर भारी पड़ता है। अंधाधुंध शहरीकरण, वनों का कटाव, कृषि योग्य भूमि का औद्योगिकरण के विस्तार में प्रयोग, वन्य प्राणियों की संख्या में निरन्तर गिरावट, जहरीली होती जा रही हवा मनुष्य के जीवन के लिए नये-नये संकट उत्पन्न कर रही है। छोटे से लाभ के लिए अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है वह।