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हिन्दी उपन्यास की विकास यात्रा | Original Article

Rajiv Sharma*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

इस शोध पत्र के माध्यम से आप हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास की पृष्ठभूमि समझ सकेंगे। प्रारम्भिक हिन्दी उपन्यासों के बारे में जान सकेंगे। प्रेमचन्द-युग और स्वतन्त्रता से पूर्व हिन्दी उपन्यास का विकास समझ सकेंगे। स्वातन्त्र्योत्तर युग में हिन्दी उपन्यास का विकास-क्रम समझ सकेंगे। हिन्दी उपन्यास लेखन की समकालीन प्रवृत्तियाँ समझ सकेंगे। प्रारम्भिक हिन्दी उपन्यास का कालखण्ड सन् 1877 से 1918 माना जा सकता है। सन् 1877 में श्रद्धाराम फिल्लौरी ने भाग्यवती उपन्यास लिखा था। यह उपन्यास उपदेशात्मक है। यह अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास तो नहीं था, परन्तु इसमें विषय-वस्तु की नवीनता थी। इसीलिए इसे हिन्दी का पहला उपन्यास कहा गया है। हिन्दी उपन्यासों के प्रेरणास्रोत रहे बंगला उपन्यासों की भूमि बहुत उर्वर रही है। बंगला में सन् 1877 के पहले बहुत से उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे। प्रेमचन्द युग की समय-सीमा सन् 1918 से सन् 1936 तक मानी जाती है। यह समय-सीमा छायावाद युग की भी है। हिन्दी उपन्यास के विकास में प्रेमचन्द और उनके युग का बहुत महत्व है। प्रेमचन्द पहले ऐसे उपन्यासकार हैं, जिन्होंने भारतीय जन-जीवन की समस्याओं को गहराई से समझा। उनके उपन्यास आम आदमी के दुख-दर्द की दास्तान हैं। समकालीन हिन्दी उपन्यास साहित्य आदिवासी विमर्श को भी अपने केन्द्र में रखता है। इन उपन्यासों में आदिवासियों का जंगल-जमीन से जुड़ाव, उन्हें जंगल-जमीन से दूर करने के सरकारी पैतरों और उनकी अस्मिता से जुड़े प्रश्न उठाए गए हैं।