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महादेवी का गीति-सौष्ठव | Original Article

Reena Saroha*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

हिन्दी की छायावादी काव्य-धारा के आधार-स्तम्भों में ‘प्रसुमनि’ (प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी, निराला) कवियों का विशेष योगदान रहा है। महादेवी के काव्य में एक साथ गीति, प्रणय, वेदना, दुःख, करुणा, रहस्यवाद, छायावाद, सर्वात्मवाद इत्यादि के दर्शन किये जा सकते हैं। छायावाद की सम्यक् पहचान इनके काव्य में हो जाती है। आचार्य विनय मोहन शर्मा ने महादेवी की विशिष्टता दर्शाते हुए कहा है- ‘छायावाद ने यदि महादेवी को जन्म दिया तो महादेवी ने छायावाद को प्राण दिये।’ कविवर पंत ने महादेवी वर्मा को एक सशक्त कवयित्री स्वीकार किया है- ‘महादेवी जी की छायावादियों में एकमात्र वह चिरंतन भाव-यौवना कवयित्री है, जिन्होंने नये युग के परिपे्रक्ष्य में राग तत्त्व के गूढ़ संवेदन तथा राग मूल्य को अधिक मर्मस्पर्शी, गंभीर, अन्तर्मुखी, तीव्र संवेदनात्मक अभिव्यक्ति दी है।’ डॉ. कामिल बुल्के का कथन है- ”भारतीय स्वाभिमान जितना सच्चा और स्वाभाविक है, उतना ही विवेकपूर्ण और प्रगतिशील भी है। नवीन विचारों को अपनी प्रखर बुद्धि की कसौटी पर कसना, खरे उतरने पर उन्हें प्राचीन भारतीय साहित्य साँचे में डालना तथा निर्भीकतापूर्वक अपनाना, इस क्षमता में महादेवी जी के शक्तिशाली व्यक्तित्व का अनिवार्य गुण मानता हूँ।”