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विश्वपटल पर हिन्दी भाषा | Original Article

Reena Saroha*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

जब हम विश्व के रंगमंच पर खड़े होकर विहंगम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि विगत कुछ वर्षों से हिन्दी का वैश्विक मंच विशाल से विशालतर होता जा रहा है। राष्ट्र-संघ में हिन्दी की स्थापना का प्रयास, विश्व हिन्दी सम्मेलनों का आयोजन आदि ऐसे उपक्रम हैं जिससे हिन्दी की वैशिवक क्षमता सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अब हिन्दी एकदेशीय नहीं अपितु बहुदेशीय भाषा का रूप ले चुकी है। हिन्दी बोलने वालों की दृष्टि से हिन्दी संसार की तृतीय बड़ी भाषा है। इस समय भारत के बाहर शताधिक विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में हिन्दी का पठन-पाठन इस बात का द्योतक है कि हिन्दी मात्र साहित्य की चीज नहीं वरन् वह हृदयोंको जोड़ने वाली भाषा है।[1] वर्तमान समय में हिन्दी को लेखन एवं प्रचार-प्रसार प्रायः दो रूपों में हो रहा है। प्रथम के अन्तर्गत वे देश आते हैं, जहाँ के लोग हिन्दी को एक विश्व भाषा के रूप में ‘स्वांत सुखाय’ सीखने, पढ़ते-पढ़ाते हैं। इसके अन्तर्गत रूस, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, इटली, बेल्जियम, फ्रांस, चैकोस्लोवाकिया, रूमानिया, चीन, जापान, नार्वे, स्वीडन, पोलैण्ड, आस्ट्रेलिया, मैक्सिको आदि देश आते हैं। दूसरे के अंतर्गत वे देश आते हैं जहाँ भारत से जाने वाले प्रवासी भारतीय और भारतवंशी लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं, जिनकी मातृभाषा हिन्दी है। भारतवंशी लोग मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, कीनिया, ट्रिनीटाड-टुबैगो, बर्मा, थाईलैण्ड, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, दक्षिणी अफ्रीका आदि देशों में रह रहे हैं। इन दोनों प्रकार के देशों में हिन्दी का रचना-संसार बहुत ही विपुल एवं समृद्ध है। वस्तुतः विश्व भाषा हिन्दी भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को लक्ष्य करके प्रसारित हो रही है। विदेशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिका, कम्प्यूटर आदि के माध्यम से हो रहा है।