मृदुला गर्ग कृत नाटक जादू का कालीन में बदलते रिश्ते, बदलते आर्थिक मूल्य | Original Article
मूल्य कोई मूत्र्त वस्तु नहीं है, जिसे हम देख सके, बल्कि मूल्य अपने आप में एक अनुभव दृष्टि है। मूल्य एक धारणा है जिसका सम्बन्ध मानव से है। जितना समाज प्राचीन है, मूल्य भी उतना ही प्राचीन है। मूल्यों का क्षेत्र व्यापक है। समाज में मूल्य सदैव बनते मिटते रहते हैं। प्रत्येक समाज की पृथक्-पृथक् मान्यताएँ विचार और परम्पराएँ होती है, जिनके आधार पर मूल्यों का गठन और विघटन होता है। मूल्यों के इन परिवर्तनों के साथ ही मानवीय सम्बन्धों में भी परिवर्तन सहज संभाव्य है। वर्तमान समय में मतैक्य का अभाव है। यही कारण है कि मूल्य प्रगतिशील होते हुए भी विघटित होता रहा है। इनमें युगानुकूल परिवर्तन होते रहते हैं।