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प्रताप सहगल रचित नाटक कोई अंत में दाम्पत्य संबंधों में विघटन | Original Article

Jai Bhagwan*, Parveen Kumar, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

नाटककार आज इस सत्यता को बड़ी ईमानदारी से स्वीकार करने लगे हैं कि सामान्य जन की दयनीय स्थिति और त्रासद नियति के लिए जिम्मेदार ताकतों के बहुरूपी चेहरों को बेनकाब करना और जनता में आत्मविश्वास और आक्रोश पैदा करके अन्याय और शोषण की शक्तियों के विरुद्ध लडऩे के लिए तैयार करना आज के सही, प्रासंगिक, सार्थक नाटक का ऐतिहासिक उत्तरदायित्व है। हमारा आज का नाटक और रंगमंच अपनी इस महत्त्वपूर्ण भूमिका और बुनियादी जिम्मेदारी से कतरा कर आगे नहीं बढ़ सकता।