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केदारनाथ सिंह की कविता में सामाजिक यथार्थ | Original Article

Renu Mittal*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

केदारनाथ सिंह के काव्य की सबसे बड़ी शक्ति नैतिकता के प्रति उनकी आस्था है। उनकी यह आस्था संसार को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करती रहती है। उनका मन सुंदर और मूल्यवान चीज़ों के प्रति आकर्षित होता है, जो उन्हें संसार को बेहतर बनाने की शक्ति प्रदान करता है। नंदकिशोर नवल लिखते हैं कि ‘‘जो कुछ भी सुंदर और मूल्यवान है, उसके प्रति उनके मन में अपार आकर्षण है और दुनिया को बेहतर बनाने वाली शक्ति के प्रति वे आशावान हैं।’’2 कविता में यथार्थ का विशेष महत्व होता है। कवि ने इस बात को स्वीकार भी किया है- ‘‘वह 1⁄4नेरुदा1⁄2 कहता है कविता रियालिस्टिक नहीं हो सकती, पर यथार्थ के बिना भी वह नहीं रह सकती। मुझे इस बात में काफी सार दिखायी पड़ता है। कविता अपने तत्व यथार्थ से ही लेती है। वह दोहरे स्तर पर यथार्थ से जुड़ती है। वह अभिव्यक्ति का उपकरण भी यथार्थ से ही लेती है और यथार्थ को ही व्यक्त करती है। यहाँ से दो बातें निलकती हैं कि कविता यथार्थ के बिना जीवित नहीं रह सकती और दूसरी ओर यथार्थवाद के अलावा वह एक खास तरह की विचार परंपरा से भी जुड़ी हो। उसे आवश्यक मुक्ति चाहिए, कवि के अनुभव के कारण वह रूप लेती है। इसलिए संसार के सारे कवि एक विचारधारा से प्रतिबद्ध रहते हुए भी एक जैसी कविता नहीं लिखते। स्वयं नेरुदा और ब्रेख़्त दोनों का शिल्प, विषय, भाषा आदि यानी कविता का पूरा ताना-बाना भिन्न है। इसलिए मैं यह मानता हूँ कि रचना का कहीं-न-कहीं एक ख़ास तरह की रचनात्मक मुक्ति से गहरा संबंध है और उसी मुक्ति में मेरा विश्वास है।