ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे एवं संभावना का अध्ययन | Original Article
संयुक्त राष्ट्र संघ एक अंतरराष्ट्रीय अंतरसरकारी संगठन के निर्माण का विश्व का दूसरा प्रयास था। राष्ट्र संघ की असफलता ने एक ऐसे नये संगठन की स्थापना के विचार को जन्म दिया जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक समतापूर्ण व न्यायोचित बनाने में केन्द्रीय भूमिका अदा कर सके। यह विचार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उभरा तथा 5 राष्ट्रमंडल सदस्यों तथा 8 यूरोपीय निर्वासित सरकारों द्वारा 12 जून, 1941 को लंदन में हस्ताक्षरित अंतर-मैत्री उद्घोषणा में पहली बार सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त हुआ। इस उद्घोषणा के अंतर्गत एक स्वतंत्र विश्व के निर्माण हेतु कार्य करने का आह्वान किया गया, जिसमें लोग शांति व सुरक्षा के साथ रह सकें। भारत ने संयुक्त राष्ट्र को ऐसे मंच के रूप में देखा है जो अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के गारंटर के रूप में भूमिका निभा सकता है। हाल के समय में, भारत ने विकास एवं गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, जलदस्युता, निरस्त्रीकरण, मानवाधिकार, शांति निर्माण एवं शांति स्थापना की बहुपक्षीय वैश्विक चुनौतियों की भावना में संघर्ष करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को सुदृढ़ करने का प्रयास किया है। इस शोध-पत्र में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे एवं संभावना का अध्ययन किया गया है।