लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की दिशा में पंचायती राज व्यवस्था | Original Article
किसी भी राष्टं में लोकतंत्र का उन्नयन तभी सम्भव है जब स्थानीय स्तर से लेक र शीर्ष तक के शासन में सामान्य जन की सक्रिय भागीदारी हो, स्थानीय स्वशासन के संदर्भ में हेराल्ड जे. लॉस्की का मत है कि, ‘‘हम लोकतंत्रीय शासन से पूरा लाभ तब तक नहीं उठा सकते, जब तक कि हम यह न मान ले कि सभी समस्याएँ केन्द्रीय समस्याएँ नहीं है और उन समस्याओं को उन्हीं स्थानों पर उन्हीं लोगों के द्वारा हल किया जाना चाहिए जो उन समस्याओं से सर्वाधिक प्रभावित होते है।’’ भारत जैसे देश में जहाँ की तीन चैथाई से अधिक जनता गाँवों में निवास करती है वहाँ पंचायत राज जैसी संस्थाओं का महत्त्व स्वतः सिद्ध एवं सर्वथा असंदिग्ध है। लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में पंचायत राज, शासन व्यवस्था को आम आदमी को उपलब्ध कराने का अच्छा माध्यम है। राष्टं पिता महात्मा गाँधी ने लिखा है कि, ‘‘स्वतंत्रता स्थानीय स्तर से प्रारम्भ होना चाहिए’’। इस प्रकार प्रत्येक गाँव में गणराज्य अर्थात पंचायत राज होगा। प्रत्येक के पास पूर्ण सत्ता एवं शक्ति होगी। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक गाँव को आत्मनिर्भर होना चाहिए और अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूर्ण करना चाहिए जिससे सम्पूर्ण प्रबंध वह स्वयं चला सके। पंचायत राज व्यवस्था के द्वारा सामाजिक परिवर्तन आना एक अवश्यम्भावी कल्पना है, स्वतंत्रता के पश्चात् से अब तक लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की दिशा में कई प्रयास हुए है।