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हिन्दी का वैश्विक स्वरूप | Original Article

Tabassum Khan*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

मुझे इस बात पर गर्व है कि हमारी हिन्दी भाषा का पठन-पाठन विश्व के लगभग सभी देशों में हो रहा है। सन् 1975 में विश्व का पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर में हुआ था जिसमें विश्व के विभिन्न देशों के हिन्दी के अनेक मूर्धन्य विद्वानों के साथ ही भारत के अनेक हिन्दी भाषी और अहिन्दी भाषी हिन्दी के साहित्यकारों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन का आयोजन बहुत ही अच्छा और प्रमाणित रहा था। इसे भाग लेने देश-विदेशों के विद्वानों ने बड़ी आतुरता से हिन्दी में हिन्दी के लिए अपने विचार व्यक्त किये थे। सारा वातावरण हिन्दी की प्रशंसा और उसके जयगान से ध्वनित हो रहा था। इस सम्मेलन से ही अधिकांश हिन्दी वालों को पहली बार इस बात का पता चला था कि हिन्दी विश्व के किन-किन देशों में लोकप्रिय है और पठन-पाठन की भाषा बनी हुई हैं। ये बात अलग है कि आज हिन्दी अपने ही घर में अतिथि बनी हुई है किन्तु देश और विदेश में इनका प्रचार और प्रसार अपनी चरम सीमा पर है। मारीशस के विद्यालयों में हिन्दी पढायी जाती है। साप्ताहिक हिन्दुस्तानी साप्ताहिक जनता और जमाना पत्र हिन्दी में प्रकाशित होते है। वहां के प्रसिद्ध साहित्यकार सोमदत्त बखेरी, अनंत अभिमन्यु आदि की हिन्दी रचनाऐं वहां के स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं के अतिरिक्त भारत की धर्मयुग “सारिका” जैसी पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रहती है।