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हिंदी काव्य में अस्तित्ववाद का प्रभाव (अज्ञेय एवं मोहन राकेश के संदर्भ में) | Original Article

Anmol Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

अस्तित्ववाद मूलतः पश्चिमी जगत की देन है आधुनिक हिंदी साहित्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है अस्तित्ववाद का हिंदी काव्य में उन्मुख सर्वप्रथम सच्चिदानंद हीरा नंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की रचना में देखने को मिलता है एक तरह से हम कह सकते हैं कि स्वतंत्र युग के पूर्व अस्तित्ववाद का स्वर हमें सुनाई देने लगा था। अज्ञेय ने अस्तित्व के चिंतन का जो स्वरूप अपनी रचनाओं में दिखाया है उस पर केवल पश्चिम जगत के अस्तित्ववाद की विचार धारा से प्रेरित होकर नहीं लिखी बल्कि मानव की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए सहज ही हृदय में उत्पन्न विचारों के अनुसार की है। अज्ञेय जी की रचनाओं में जीवन का मूल स्वर छुपा है जिसको उन्होंने मनुष्य तक पहुंचाने का प्रयास किया है। दूसरी तरफ मोहन राकेश की रचना ‘आषाढ़ का एक दिन’ में कालिदास की निराशा एवं स्वतंत्रता चयन के अनुसार नहीं बल्कि आर्थिक असमानता के अनुसार उनका राज्य अभिषेक की ओर बढ़ना इत्यादि के संदर्भ में हम अस्तित्ववाद का अवलोकन कर सकते हैं ।