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हिन्दी समीक्षा – दायित्व एवं विकास: एक अध्ययन | Original Article

Manoj Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

किसी भी व्यक्ति या वस्तु का परखना, निरखना, उसके गुण-दोष एवं रंग-रूप को सतही धरातल पर विवेचित करना-सहज मानवीय स्वभाव है, लेकिन साहित्यिक समीक्षक का दायित्व मात्र इतना ही नहीं होता, उसे तो तटस्थ भाव से रचना की गहन संरचना में प्रवेश कर उसके भीतरी गवांक्षों को जांचना, परखना और सम समायिक प्रासंगिकता के अनुकूल उसकी अर्थवत्ता को स्थापित करना होता है। समीक्षा का मूल उद्देश्य -‘कवि (रचनाकार) की कृति का सभी दृष्टिकोणों से आस्वाद कर पाठकों को उसी प्रकार के अस्वाद में सहायता देना तथा उनकी रूचि को परिमार्जित करना एवं साहित्य की गतिविधि निर्धारित करने में योगदान देना होता है।’’[1] अतः समालोचना केवल किसी कवि का हाल ही नहीं बताती वरन साधारण पाठक समाज में औचित्य भी बढ़ाती है....... समालोचक का कर्तव्य है कि वह ग्रंथों के ठीक-ठीक गुण दोष बता कर ऐसे मनुष्यों की रुचियों की भी उचित उन्नति करे।’’[2]