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भारतीय साहित्य और समाज पर पुनर्जागरण का प्रभाव | Original Article

Manoj Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

पुनर्जागरण विचारों और मूल्यों की वह सबसे बड़ी और सबसे अधिक मूलगामी क्रांति है, जिसने सामन्ती व्यवस्था का नैतिक आधार छीनकर परवर्ती शक्तियों की सामाजिक राजनीतिक क्रांतियों का पद प्रशस्त किया। दीर्घकालीन भारतीय इतिहास में अनेक सांस्कृतिक पुनर्जागरण हुए, लेकिन पुनर्जागरण शब्द मूलतः यूरोप के मध्ययुग और आधुनिक युग की संक्रान्ति का वाचक है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहास-दार्शनिक ‘मिशेसेंट’ ने 19वी. शती. के पूर्वांर्द्ध में किया था, किन्तु इसे प्रचारित करने का सर्वप्रथम श्रेय इटली के इतिहासकार वर्कहार्ट को जाता है। नवजागरण युग वस्तुतः यूनानी-रोमीय क्लासिकी विद्या के पुनरूद्धार और प्रत्यावर्तन का युग था। 14वी. शती में यूरोप में जब. प्राचीन रोमीय साम्राज्य के विध्वंस से उत्पन्न अव्यवस्था शान्त हुई, तब यूरोप की संस्कृति में एक नयी जीवनधारा का उदय हुआ, जो 16वी. शती. तक प्रवाहमयी रही। इस युग में ‘धर्म और दर्शन’ नए रूप से परिभाशित हुये, कला और विज्ञान के क्षेत्र में नवीनता का आरम्भ हुआ और इसी के समानान्तर राजनीति और सामाजिक व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन दिखाई पड़ने लगे।