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महिला प्रतिनिधियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन: झारखण्ड के सन्दर्भ में | Original Article

Mukesh Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

पंचायती राज संस्थाओं में महिला नेतृत्व विकास वर्तमान भारत का एक बेहद जरूरी विमर्श है। चूँकि यह महिला स्वतन्त्रता, समानता, मजबूती और महत्ता की हिमायत करता है, इसलिए इसे सम्पूर्ण मानव समाज के आधे हिस्से की बेहतरी से जुड़ा विमर्श कहा जा सकता है। इस बेहतरी की स्थापना हेतु भारत में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की विकेन्द्रीकृत प्रणाली प्रारम्भ की गयी। यह विकेन्द्रीकरण जमीनी स्तर पर हुआ है तथा इन संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित (वर्तमान में कई राज्यों में 50 प्रतिशत) किये जाने से जमीनी स्तर पर काफी बदलाव हुए हैं। आज भारत में 12 लाख से अधिक महिला निर्वाचित प्रतिनिधि हैं जो दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। इतना ही नहीं अगर पूरी दुनिया के निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या जोड़ी जाय तो वह संख्या इन भारतीय निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों से कम ही है। देखा जाय तो पंचायतों में महिला नेतृत्व विकास एक ऐसी मौन क्रांति का द्योतक है जो अभी राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक रूप से भले ही दिखाई नहीं दे रही हो पर उसकी धीमी आँच भारतीय लोकतंत्र को अवशय मजबूत बना रही है।