प्रेमचंदोत्तर कथा – साहित्य में पारिवारिक तनाव | Original Article
यशपाल, अमृतराय, रांगेय राघव आदि कहानीकार मार्क्सवाद से प्रभावित थे। यशपाल ने प्राचीन रूढ़ियों का खंडन करके सामाजिक जीवन के यथार्थ की कहानियाँ लिखी, उपेंद्रनाथ अश्क ने समाज में व्याप्त नग्न सत्यों का यथार्थ चित्रण किया। मनोविश्लेषणात्मक कहानीकारों में जैनेंद्र,इलाचंद्र जोशी और अज्ञेय प्रमुख थे। महिला कहानीकारों में प्रमुख हैं - सुभद्राकुमारी चौहान, कमलादेवी, उषा मित्र, चंद्रकिरण सोनरिक्सा, मन्नू भंडारी, शिवानी आदि। सन 1940 के आस-पास उपन्यास साहित्या में जिन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं, उनमें हैं -भगवतीचरण वर्मा – ‘टेढ़े -मेढ़े रास्ते’, ‘तीन वर्ष।’ सियारामशरण गुप्त- ‘नारी’ और ‘गोद।’ जैनेंद्रकुमार – ‘परख’, ‘सुनीता’, ‘त्यागपत्र।’ हज़ारीप्रसाद द्विवेदी – ‘बाणभट्ट की आत्मकथा।’ यशपाल – ‘दिव्या’, ‘दादा कामरेड’, ‘मनुष्य के रूप।’ अज्ञेय – ‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’ आदि। स्पष्ट रूप से उपन्यास लेखन में नज़र आती हैं। पहली धारा में प्रेमचंद की यथार्थवादी साहित्य-लेखन की प्रवृत्ति और दूसरी धारा प्रसाद की भाववादी परंपरा को आगे लेकर चली।दूसरी धारा में प्रगतिवादी और मनोवैज्ञानिक यत्न उपन्यासों का विकास हुआ।अतः यहाँ कुछ कथा -साहित्य में पारिवारिक तनाव को देखने का किया जाएगा ।