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निराला: साहित्य के परशुराम | Original Article

Raj Kamal Mishra*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते है। अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है ओर यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते है। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की काव्यकला की सबसे बड़ी व्यिेषता है चित्रण कौशल। आंतरिक भाव हो या बाह्य जगत के दृश्य – ‘रूप, संगीतात्मक ध्वनियाँ हो या रंग और गंध, सजीव चरित्र हों या प्राकृतिक द्रश्य, सभी अलग-अलग लगनेवाले तत्वों को घुला-मिलाकर निराला ऐसा जीवंत चित्र उपस्थित करते है कि पढ़ने वाला उन चित्रों के माध्यम से ही निराला के मर्म तक पहुँच सकता है। निराला के चित्रों में उनका भावबोध ही नहीं, उनका चिंतन भी समाहित रहता है। इसलिए उनकी बहुत सी कविताओं में दार्शनिक गहराई उत्पन्न हो जाती है। इस नए चित्रण- कौशल और दार्शनिक गहराई के कारण अक्सर निराला की कवितायें कुछ जटिल हो जाती है, जिसे न समझने के नाते विचारक लोग उन पर दुरूहता आदि का आरोप लगाते हैं। उनके किसान बोध ने ही उन्हें छायावाद की भूमि से आगे बढ़कर यथार्थवाद की नई भूमि निर्मित करने की प्रेरणा दी। विशेष स्थितियों, चरित्रों और द्रश्यों को देखते हुए उनके मर्म को पहचानना और उन विशिष्ट वस्तुओं को ही चित्रण का विषय बनाना, निराला के यथार्थवाद की एक उल्लेखनीय व्यिेषता हैं निराला पर अध्यात्मवाद और रहस्यवाद जैसी जीवन -विमुख प्रवृत्तियों का भी असर है।