संस्कृत नाटकों में नारी | Original Article
भारतीय नारी इतिहास का अभिन्न अंग है। नर-नारी सामाजिक जीवन रूपी रथ के दो समान महत्वपूर्ण पहिये है, जो एक के बिना दूसरा अर्पूण है। दोनों की प्रकृति और कृति भिन्न हो सकती है, लेकिन दोनों का लक्ष्य भिन्न नहीं हो सकता।