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लोकतांत्रिक व्यवस्था में पंचायती राज की प्रासंगिता | Original Article

Vijaypal Singh*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारतीय जनमानस में अनादिकाल से ही यह विश्वास रहा है कि पंचों के मुख से परमेश्वर बोलते हैं। पंचों के न्याय में परमेश्वर का न्याय निहित होता है। प्राचीन भारत का इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि भारतीयों ने सामुदायिक जीवन का विकास एवं आपसी वाद-विवाद पंचायतों के माध्यम से निपटाये हैं। इस तरह स्वनिर्मित एवं स्वशासित भारतिय ग्रामीण समुदाय में जीवन में सहजता एवंज न कल्याण कि भावना आदिकाल से ही विद्यमान रही है। वर्तमान में पचायती राज की स्थापना भारतीय लोकतंत्र की एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है। लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और पंचायती राज दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची है। यह जनता और सत्ता का आपसी समन्वय है। पंचायती राज लोकतंत्र का ही रूप है।