आँचलिक उपन्यास की बहुआयामी अवधारणा | Original Article
हिन्दी कथा साहित्य में सन् 1952-53 से ‘आंचलिक’ शब्द प्रयोग होने लगा और धीरे-धीरे इतना व्यापक तथा लोकप्रिय हुआ कि इसने एक साहित्यिक आंदोलन का रूप धारण कर लिया। यह शब्द मुख्यतया कथा साहित्य की ही एक समसामयिक धारा के लिए प्रयुक्त किया गया परन्तु इसका प्रभाव केवल वहीं तक सीमित नहीं रहा। कालान्तर में ‘आंचलिक’ शब्द अति-व्याप्ति क्षेत्र के कारण इसमें न केवल स्थानीय रंग से युक्त रचनाएं वरन् शुद्ध ग्रामकथायें तक समेट ली गयी। परिणामतः कथा साहित्य में नगर जीवन से भिन्न रचनाएं आंचलिक श्रेणी में सम्मिलित की जाने लगी।