सम्राट अशोक का बौद्ध धर्म (धम्म्) व उसके द्वारा निर्मित शिलालेख | Original Article
प्राचीन भारत के राजवंशों में मौर्य -साम्राज्य का प्रतापी सम्राट अशोक बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा अनुयायी एवं आश्रयदाता रहा है। उसके 13वें अभिलेख से ज्ञात होता है कि कलिंग विजय की रक्तिम -क्रीड़ा ने उसकी राज्यविजयलिप्सा को धर्म विजय के रूप में परिवर्तित कर दिया था। बौद्ध धर्म के स्पर्श से ही वह सम्राट से ही प्रियदर्शी बन गया था। उसने बौद्धधर्म के प्रचारार्थ अपने राज्य में धर्म प्रचारक भेजे थे। स्थान-स्थान पर तथागत की कल्याणमयी वाणी को उत्कीर्णित कराके अधिक से अधिक लोगों तक पहॅुचाया उसने वृक्ष लगवाये, कूप खुदवाये और चिकित्सालय बनवायें। निष्कर्ष यह रहा कि अशोक ने अपना सारा जीवन और साम्राज्य की सारी शक्ति उसने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार एवं उसके उच्चादर्शो को चमकाने में लगा दी। प्रस्तुत शौधपत्र में सम्राट अशोक की महानता एवं उसके कार्यों द्वारा स्थापित शिलालेख एवं बौद्ध धर्म का किस प्रकार प्रचार-प्रसार किया है लोकहितकारी संदेश को अशोक ने धरती में फैला देने का भी महान कार्य किया। मनुष्य - मनुष्य के कानों तक इस शुभ -संवाद को पहुचा सकने में वह जो कुछ कर सकता था उसने किया।