आधुनिक युग में नव्यतर विधाओं के संदर्भ में ‘आंचलिकता’ एक दिशा की उपलब्धि है। व्यष्टिसत्य और समष्टि-सत्य का उपन्यासों के धरातल पर दो रूपों में विकास हुआ है। व्यष्टि सत्य को लोगों ने माक्र्स, फ्रायड, एडलर, युंग, सात्र्र आदि की वैचारिक भूमिका पर ग्रहण किया है, तो समष्टि सत्य की चुनौती को ‘आंचलिकता’ ने स्वीकार किया है। उपन्यास के प्रसंग में ‘अंचल’ ‘आंचलिक’ तथा ‘आंचलिकता’ आदि शब्दों पर विचार करना आवश्यक है। ‘अंचल’ शब्द संस्कृत की ‘अंच्’ धातु में ‘अलच्’ प्रत्यय के योग से बना है। भौगोलिक आदि सीमाओं से घिरे हुए जनपद को ‘अंचल’ की संज्ञा दी जा सकती है। वस्तुतः ‘अंचल’ शब्द स्थान विशेष का सूचक है। ‘आंचलिक’ शब्द की संस्कृत व्याकरणानुसार सिद्धि नहीं की जा सकती। ‘अंचल’ से अंचलीय, अंचलता, अचलत्व आदि शब्दों का निर्माण होना चाहिए किन्तु इन शब्दों की अपेक्षा ‘आंचलिक’ शब्द सर्वस्वीकृत एवं प्रचलित हो गया है। ‘आंचलिकता’ शब्द भाववाचक है।