अधिकांश विद्वानों ने साहित्य के तीन भेद किये हैं-लोक साहित्य, जनसाहित्य व शिष्ट साहित्य। विद्वानों ने लोकसाहित्य व जनसाहित्य को एक दूसरे का पर्याय माना है, जबकि दोनों में सूक्ष्म अंतर है। लोकसाहित्य समस्त लोक द्वारा, समस्त लोक के लिए होता है। उसमें किसी रचनाकार का नामोल्लेख नहीं होता। लोक साहित्य जहाँ लोक के लिए लोक के ही द्वारा रचित साहित्य है, वहाँ जनसाहित्य लोक के लिए लोक में से ही व्यक्ति विशिष्ट द्वारा रचित साहित्य है। लोकसाहित्य में रचयिता अनुपस्थित है जबकि जनसाहित्य में रचयिता रचना में उपस्थित है।1 लोक साहित्य में लोक मनोभावों का तीव्र वेग है, जिस पर कोई नियम लागू नहीं होता। जनसाहित्य में लोक मनोभावों की अभिव्यक्ति की लोक मांग है, जिसकी अपनी अवधारणाएँ एवं नियमावली है, शिष्ट साहित्य शास्त्रीय मापदंड पर खरा उतरने वाला विद्वता का प्रदर्शन है। इस प्रकार साहित्य के इन तीनों रूपों की अलग-अलग विशेषताएँ हैं। जनकवि लोक से ही होता है और उसकी रचना के भाव तथा भाषा लोक से ही होते हैं। उसकी अभिव्यक्ति को लोकसाहित्य में इसलिए नहीं रखा जा सकता क्योंकि वह लोक साहित्य की परिभाषा से बाहर है।