नागार्जुन को प्रगतिशील काव्यधारा का आधार कवि माना जाता है। नागार्जुन ने जीवन को उसके विविध रुपो मे, जटिल संघर्शो को, राजनीतिक विकृतियों को, मजदूर आन्दोलनों को, किसान जीवन के सामान्य दुःख सुख को पहचानने और अभिव्यक्त करने का वृहतर सर्जनात्मक उत्तरदायित्व अपने कधों पर उठाया है। जिस प्रकार उनकी काव्य संरचना और कथ्य के स्तर पर वैविध्य है वैसा ही वैविध्यमय उनका जीवन भी रहा है। नागार्जुन की बात करते ही उनकी कविताएं “अकाल और उसके बाद” बादल को घिरते देखा तथा “कालिदास सच-सच बतलाना” हठात ध्यान मे आ जाती है लेकिन इन तीनो कविताओं की विशयवस्तु अलग-अलग है, इनका षिल्प भी एक दूसरे से भिन्न है और तीनों की संवेदना के भी अलग-अलग रंग है। नागार्जुन के काव्य में संवेदना के इन्ही भिन्न-भिन्न रुपों के माध्यम से हम उनके काव्य का अध्ययन इस इकाई मे करेंगे। किसी भी वस्तु, भाव और स्थिति के ह्नदय पर पड़े प्रभाव की प्रतिक्रिया ही संवेदना कहलाती है नागार्जुन का काव्य संसार वैविध्यमय होने के साथ-साथ बहुत व्यापक एवं विराट है इसमें प्रकृति, मनुष्य, पशु, राजनीतिक सामाजिक जीवन, जीवन के मधुर एवं कोमल पक्ष व्यग्ंय की तीखी धार दैनन्दिन जीवन की गतिविधियाँ सब शामिल है।