अमृतलाल नागर का उपन्यास ‘खंजन नयन (1981) को प्रकाशित हुआ यह उपन्यास हिन्दी के सुज्ञात भक्त कवि सूरदास के जीवन चरित्र को ओपन्यासिक रूप में प्रस्तुत करता है। खंजन नयन की सार्थकता इसी में है कि जिस व्यक्ति को विधाता ने तन की आँखे नहीं दी उसी को मन की आँखे देकर दृष्टि सम्पन्न बना दिया। सूरदास ने अपने इन्हीं ‘खंजन-नयनों’ से इष्टदेव के दर्शन किए। ‘खंजन नयन’ में व्यक्त सामाजिकता के अन्तर्गत हम यह देखेंगे कि उस समय समाज की क्या स्थिति थी? समाज में कौन-कौन से वर्ग थे, उस समय नारी की क्या दशा थी, उस समय के समाज का नारी के प्रति क्या दृष्टिकोण था क्या नारी अपने अधिकारों के प्रति अपनी स्थिति के प्रति संचेत थी? व तत्कालीन समाज में धर्म का क्या स्वरूप था?